सोंधी-सोंधी-सी सुगंध, माटी से बोली, बादल बरस गया, धरती ने आँखें खोली। चारों ओर हुई हरियाली कहे मयूरा, सदियों का जो सपना है हो जाए पूरा। एक यहाँ पर नहीं अकेला, होगी टोली, सोंधी-सोंधी-सी सुगंध, माटी से बोली।। बाग-बगीचे, ताल-तलैया सब मुस्काएँ, झूम-झूमकर मस्ती में तरु गीत सुनाएँ। मस्त पवन ने अब खोली है अपनी झोली, सोंधी-सोंधी-सी सुगंध, माटी से बोली।।सागर का जो था मसूरी सफल हो गया, खुशियों की दुनिया में आकर स्वयं खो गया। धरती ने श्रृंगार किया, फिर माथे रोली, सोंधी-सोंधी-सी सुगंध, माटी से बोली। पावस का मधुमास आस-विश्वास बढ़ाता, नत मस्तक होकर 'अचूक' पद पुष्प चढ़ाता। सदा-सदा से चलती आई हँसी-ठिठोली, सोंधी-सोंधी-सी सुगंध, माटी से बोली।।
कविता का सरल अर्थ-
[1] सोंधी-सोंधी-सी ......माटी से बोली।
वर्षा ऋतु में पानी बरसने से मिट्टी से सोंधी-सोंधी सुगंध आ रही है। कवि कहते हैं - यह सोंधी सुगंध मिट्टी से कहती है, देखो, बादल बरस गए हैं और धरती मगन होकर इस दृश्य को देखने के लिए अपनी आँखें खोल दी हैं। पानी बरसने पर धरती हरी-भरी हो गई है। मोर कहता है कि सदियों से चला आ रहा आनंद मनाने और मस्ती से नृत्य करने का उसका सपना अब वर्षा काल में पूरा हो जाएगा। अब वह अकेला नहीं होगा, उसकी पूरी टोली अब यहाँ जुटेगी। वर्षा ऋतु में सोंधी-सोंधी-सी सुगंध मिट्टी से बात करती है। वर्षा ऋतु में चारों ओर आनंद का प्रसार हो गया है। वर्षा की फुहारों से बाग-बगीचों के वृक्ष प्रफुल्लित हो गए हैं। तालाब और छोटी-छोटी तालियों पानी से लबालब भर कर प्रसन्न दिखाई दे रही हैं। बगीचे के वृक्ष हवा झकोरों से मस्ती में भरे हुए गुनगुनाते और गाते हुए से लगते हैं। लगता है हवा मस्ती में आकर अपना दिल खोल कर बह रहीहै। वर्षा बात करती है। ऋतु में सोंधी-सोंधी-सी सुगंध मिट्टी से यह बात करती है।
[2] सागर का जो..... माटी से बोली ।
पृथ्वी को जल से सींच कर हरा-भरा करने का समुद्र का विचार वर्षा की झड़ियों से सफल हो गया है। समुद्र इतना प्रसन्न है कि वह अपने आप को भूल-सा गया है। वर्षा ऋतु में चारों ओर हरियाली फैल गई है। इससे ऐसा लगता है जैसे धरती शृंगार करके सज-धज गई हो और उसके माथे पर रंग-बिरंगी वनस्पतियों की रोली शोभा दे रही हो। कवि कहते हैं कि वर्षा ऋतु का वसंत काल समस्त प्राणियों में आशा और विश्वास की भावना की वृद्धि करता है। ऐसा लगता है, जैसे वर्षा ऋतु श्रद्धा से सिर झुकाकर पृथ्वी माता के चरणों में वर्षा का जल रूपी पुष्प अर्पित कर रही हो। यह प्रथा युगों-युगों से इसी तरह हँसी-खुशी चलती आई है। वर्षा ऋतु में सोंधी-सोंधी-सी सुगंध मिट्टी से यह बात कहती है।
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