चित्रकार की चतुराई
एक चित्रकार था। उसे प्राकृतिक दृश्यों के चित्र बनाने का शौक था। इसलिए वह प्रायः नदी के किनारे या बाग-बगीचों में जाकर चित्र बनाया करता था। एक बार चित्रकार घने जंगल में पहुँच गया। जंगल में एक जगह खूब हरियाली थी। रंगबिरंगे फूल खिले हुए थे। चित्रकार वहाँ बैठकर एक चित्र बनाने लगा। तभी सामने से वहाँ एक शेर आ गया। शेर को देखते ही चित्रकार के होश उड़ गए। फिर भी उसने हिम्मत की और शेर से कहा, "हे जंगल के राजा, आप सामने वाले इस पत्थर पर बैठ जाइए। मैं आपका एक सुंदर चित्र बना दूँ। चित्र बनाने की बात सुनते ही शेर खुश हो गया और चित्रकार के सामने बैठ गया। चित्रकार देर तक शेर का चित्र बनाता रहा। कुछ देर के बाद वह शेर से बोला, “महाराज, आपके अगले भाग का चित्र तो बन गया। अब आप मुँह उधर करके बैठ जाइए तो मैं आपके पिछले हिस्से का भी चित्र बना दूँ। "
अपने पूरे शरीर का चित्र बनवाने के लालच में शेर पीछे की ओर मुँह करके बैठ गया। चित्रकार को काफी समय लगाता देख आँखें बंद करके सुस्ताने लगा। चित्रकार तो इसी मौके की ताक में था। उसने चित्र बनाने का अपना सारा सामान समेटा और मुझे आश्र चुपके से वहाँ से नौ-दो-ग्यारह हो गया। इस प्रकार चतुराई से चित्रकार ने अपनी जान बचा ली।
सीख: चतुराई से काम लिया जाए, तो संकट को टाला जा सकता है।
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