सत्यवादी राम
राम नाम का एक सुशील विद्यार्थी था। एक दिन गणित की कक्षा में अध्यापक ने सभी विद्यार्थियों को गृहकार्य दिया। उसमें सबको गणित का एक प्रश्न हल करना था। घर जाकर राम उस प्रश्न को हल करने में जुट गया। उसने खूब प्रयत्न किया, पर वह उस प्रश्न को हल न कर सका। राम ने अपने बड़े भाई से मदद माँगी। उन्होंने कुछ ही समय में प्रश्न हल कर दिया। राम की खुशी का ठिकाना न रहा। दूसरे दिन अध्यापक ने सभी विद्यार्थियों का गृहकार्य देखा। केवल राम का ही उत्तर सही था। अध्यापक ने राम को शाबाशी दी। इस पर राम फूट-फूटकर रोने लगा। उसे रोते देखकर सब चकित रह गए। अध्यापक ने गोपाल से रोने का कारण पूछा। राम ने कहा, "गुरु जी, आपने मेरी प्रशंसा की, लेकिन मैं प्रशंसा के लायक नहीं हूँ। यह प्रश्न मैंने नहीं, मेरे बड़े भाई ने हल किया है। " राम की इस सत्यवादिता पर अध्यापक महोदय बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा, "बेटा, तुमने सच बोलकर सचमुच मेरा दिल जीत लिया है। यह सत्यवादिता तुम्हें एक दिन जरूर महान बनाएगी। " सीख सच बोलना एक श्रेष्ठ है।
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