बाढ़ का दृश्य
बाद प्रकृति का एक रौद्र रूप है। जब वर्षा नहीं होती तो अकाल पड़ता है। जब अधिक वर्षों होती है, तो नदियों में बाद आ जाती है। बाढ़ का पानी दूर-दूर तक फैल जाता है। कभी-कभी भारी वर्षा से किसी नदी पर बना बाँध टूट जाता है। बाँध टूटने पर भीषण बाढ़ आ जाती है। इससे गाँव के गाँव बह जाते हैं। हमारे देश में गंगा यमुना, ब्रह्मपुत्र पारा गोदावरी नर्मदा आदि नदियों में वर्षा ऋतु में अकसर भीषण बाद आती है। बाढ़ के दृश्य दूरदर्शन पर बहुधा दिखाए जाते हैं।
बाढ के तेज बहाव से बड़े बड़े पेड़ उखड़कर बहने लगते हैं। बाढ़ का पानी आसपास के गाँवों और शहरों में फैल जाता है। गाँवों के कच्चे मकान गिर जाते हैं। खेतों में खड़ी फसले नष्ट हो जाती है। बाद में कैसे जानवर पानी में यह जाते हैं। बाद में घिरे लोग ऊँचे टीलों और बड़े वृक्षों पर चढ़कर अपनी जान बचाते हैं। बाढ़ से बचने के लिए लोग सुरक्षित स्थानों में शरण लेते हैं।
बाढ़ आ जाने से जान-माल का भारी नुकसान होता है। सैकड़ों मनुष्यों और जानवरों की जाने वाली जाती हैं। मकानों के गिरने से लोग बेघर हो जाते हैं। लोग दाने-दाने को तरसने लगते हैं। बाढ़ से सड़कें टूट जाती है और रेल की पटरियों उखड़ जाती हैं। इससे यातायात ठप हो जाता है। लोग जहाँ के तहाँ फैसे पड़े रहते हैं। बाढ़ का पानी उतरने पर जगह-जगह कीचड़ जमा हो जाता है। चारों ओर गंदगी ही गंदगी दिखाई देती है। इसके कारण जानलेवा बीमारियों फैलने का खतरा पैदा हो जाता है।
भीषण बाढ़ की हालत में सरकार बाढ़पीड़ितों को तुरंत सहायता पहुँचाती है। सामाजिक संस्थाएँ भी सहायता के लिए आ आती हैं। इन संस्थाओं के स्वयंसेवक बाढ़पीड़ितों को सहायता करने में जुट जाते हैं। बाढ़ से घिरे लोगों को नाव एवं हेलिकाप्टरों दद्वारा खाने पीने की चीजें पहुँचाई जाती हैं। सेवाभावी संस्थाएँ प्रभावित लोगों में कपड़े और कंबल आदि बाँटती हैं।
इस प्रकार की सहायता से बाढ़पीड़ितों को बहुत सहारा मिलता है। विनाश, दुःख और निराशा के दिनों में मानवता का यह सरहम बेसहारा लोगों की पीड़ा कम करता है। फिर भी बाढ रोकने का कारगर उपाय करना बहुत ही जरूरी है।
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