गणेशोत्सव
गणेशोत्सव भादों महीने में मनाया जाता है। इस महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश जी की मूर्ति की स्थापना होती है। उस दिन से लेकर चतुर्दशी तक यह उत्सव मनाया जाता है। इस उत्सव की विशेष महिमा है। लोकमान्य टिळक ने इस उत्सव को सार्वजनिक रूप दिया।
गणेशोत्सव की तैयारियाँ कई दिन पहले से शुरू हो जाती हैं। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन लोग बड़ी धूमधाम से गणेश की मूर्ति खरीद कर लाते हैं। ये सुंदर और रंगीन मूर्तियाँ सजी हुई गाड़ियों में या सिर पर रखकर श्रद्धापूर्वक लाई जाती।लोग अपने घरों के स्वच्छ सुंदर सजे हुए स्थान पर इन मूर्तियों को स्थापना करते हैं गणपति बाप्पा मोरया की ध्वनि से सारा वातावरण गूंज उठता है।
सार्वजनिक संस्थाएँ बड़े-बड़े भव्य मंडप बनाती हैं। इनमें बिजली के प्रकाश की सुंदर व्यवस्था को जाती है। सार्वजनिक गणेशोत्सव में गणेश जी की बड़ी और भव्य मूर्तियाँ स्थापित की जाती हैं। मंच पर पौराणिक कथाओं के दृश्य भी खडे किए जाते हैं। वर्तमान घटनाओं को भी सांकेतिक रूप से दर्शाया जाता है।
उत्सव के दिनों में संध्या के समय की रौनक देखते ही बनती है। घरों तथा सार्वजनिक मंडपों में श्रद्धा एवं भक्तिभाव से गणेश जी की आरती उतारी जाती है। आरती के बाद प्रसाद बाँटा जाता है।
घरों में स्थापित गणेश जी की मूर्तियों अधिकतर डेढ़ दिन बाद अथवा पाँचवें या सातवें दिन समुद्र अथवा सरोवर के जल में धूमधाम से विसर्जित कर दी जाती हैं। सार्वजनिक संस्थाओं की मूर्तियाँ चतुर्दशी के दिन भव्य जुलूस एवं गाजे-बाजे के साथ समुद्र अथवा सरोवर में विसर्जित की जाती हैं। उस समय का दृश्य बहुत भव्य होता है। मूर्तियों को टूकों एवं ठेला गाड़ियों पर सजाकर विसर्जन के लिए ले जाते हैं। इस अवसर पर संगीत एवं नाच-गाने के साथ भव्य जुलूस निकाला जाता है। लोग गणपति बाप्पा मोरया, पुढच्या वर्षी लवकर या कहते हुए गणेश जी से अगले साल जल्दी दर्शन देने को प्रार्थना करते हैं। उस समय सभी का मन खुशी से नाच उठता है। गणेश विसर्जन के साथ ही यह उत्सव समाप्त हो जाता है
गणेशोत्सव एक सामाजिक एवं सांस्कृतिक उत्सव है। यह उत्सव लोगों को एकता के सूत्र से बाँधता है। गणेश जो विघ्नहर्ता और ऋद्धि-सिद्धि के देवता हैं। उनका उत्सव मनाकर हम अपने जीवन को सुखी एवं समृद्ध बनाने की कामना करते हैं।
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