दीपावली (दीवाली)
हमारे देश में अनेक त्योहार मनाए जाते हैं। उनमें दीवाली की शान निराली है। आश्विन माह की अमावस्या को मनाया जाने वाला यह पर्व, सभी पर्वो का राजा है। यह प्रकाश का पर्व है।
दीपावली के बारे में कई तरह की मान्यताएँ हैं। एक मान्यता के अनुसार इसका संबंध भगवान राम के लंका विजय से है। भगवान राम चौदह वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे। उनके अयोध्या लौटने पर अयोध्यावासियों ने रोशनी कर अपना आनंद प्रकट किया था। यह आश्विन माह की अमावस्या का दिन था तथ से हर वर्ष इस दिन दीपावली मनाई जाने लगी। धीरे-धीरे इसने त्योहार का रूप से लिया। एक मान्यता के अनुसार युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ की पूर्णाहुति की खुशी में इस त्योहार की शुरुआत हुई। जैन संप्रदाय के लोग इस दिन को भगवान महावीर के निर्वाण दिवस के रूप में मनाते हैं।
दीपावली से कुछ दिन पहले ही इस त्योहार की तैयारियों शुरू हो जाती हैं। लोग अपने-अपने घर को झाड़-पोंछकर साफ करते हैं। उसको पुताई करते और उसे सजाते हैं। लोग नए-नए कपड़े सिलाते हैं। महिलाएँ नए-नए गहने खरीदती हैं। घर-घर में पकवान और मिठाइयाँ बनती हैं। बच्चे फुलझड़ियों जलाते हैं और पटाखे फोड़ते हैं।
दीपावली का त्योहार-धनतेरस से भाईदूज तक- पाँच दिन चलता है। पाँचों दिन खूब धूमधाम रहती है। घरों पर रंगीन बल्बों को रोशनी की जाती है। दरवाजे पर ताजा फूल-पत्तियों के तोरण बाँधे जाते हैं आँगन और प्रवेशद्वार पर नित्य नई रंगोलियों सजाई जाती हैं। गली-मुहल्लों में पटाखों की आवाजें गूंजने लगती हैं।
अमावस्या की रात को दीपावली होती है। इस अवसर पर शुभ मुहूर्त में व्यापारीगण लक्ष्मी जी, गणेश जी तथा बहियों की पूजा करते हैं। दीपावली के दूसरे दिन नए वर्ष का प्रारंभ होता है। लोग अपने मित्रों, संबंधियों एवं पड़ोसियों को नए वर्ष की शुभकामनाएँ देते हैं। दूर रहने वाले प्रियजनों को बधाई संदेश भेजते हैं। भाईदूज के दिन भाई अपनी बहन को उपहार देता है और बहन भाई के लिए मंगल कामना करती है।
दीपावली प्रकाश का सुंदर पर्व है। यह पर्व हमारे घर, आँगन और अंतःकरण को जगमगाता है। अंधेरे में उजाला फैलाने वाला यह त्योहार हमारी जिंदगी में नवजोवन का संदेश लेकर आता है।
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