यदि मैं डॉक्टर होता...
[ रूपरेखा (1) डॉक्टर बनने की इच्छा (2) रोगियों का उचित इलाज (3) पैसा ही लक्ष्य नहीं (4) गाँवों में शारीरिक जाँच-शिबिर (5) जनसेवा का आदर्श।]
हमारे जीवन में डॉक्टर का बहुत महत्त्व है। डॉक्टर हमारे समाज का सबसे बड़ा सेवक है। इलाज के नए-नए चमत्कारों ने मुझ पर गहरा असर डाला है। कभी-कभी सोचता हूँ कि यदि मैं भी डॉक्टर होता तो...।
यदि मैं डॉक्टर होता, तो अपना दवाखाना गरीबों के मोहल्ले में खोलता। मैं अपने दवाखाने में मरीजों का अच्छे से अच्छा इलाज करता। मरीजों के रोगों की जांच पड़ताल करने में बहुत सावधानी बरतता। आज डॉक्टरी के क्षेत्र में नए आविष्कार हो रहे हैं। मैं हमेशा उनकी जानकारी प्राप्त करता। इससे मुझे मरीजों की बेहतर सेवा करने का मौका मिलता। उनका इलाज करने में मैं अपने ज्ञान, अनुभव और कुशलता का भरपूर उपयोग करता। मेरे दवाखाने में अमीर-गरीब सब के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाता।
डॉक्टरी का पेशा मेरे लिए केवल धन कमाने का साधन न होता। मैं ऐसा डॉक्टर कभी नहीं बनता, जिसे मरीज के दुःख-दर्द से ज्यादा अपनी फीस की चिंता रहती है। मेरे विचार से डॉक्टर को जनता का सच्चा सेवक होना चाहिए। उसे धन कमाने के लालच में मरीजों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। धन के पीछे भागने वाला व्यक्ति कभी सच्चा डॉक्टर नहीं बन सकता। डॉक्टरी के पेशे में सेवा की भावना होनी चाहिए। अगर मैं डॉक्टर होता, तो इसी भावना से मरीजों का इलाज करता।
आज गाँवों में डॉक्टरों की कमी है। डिग्रीधारी डॉक्टर तो गाँवों में बहुत ही कम होते हैं। इसलिए कई मरोज सही इलाज के अभाव में मर जाते हैं। यदि मैं डॉक्टर होता, तो समय-समय पर गाँवों में चिकित्सा शिबिर लगाता वहाँ मैं गरीबों का मुफ्त उपचार करता। मैं अपने साथ सेवाभावी डॉक्टरों का एक दल ले जाता। वे भिन्न-भिन्न रोगों से पीड़ित मरीजों की जाँच करते और उन्हें मुफ्त दवाएँ देते। कराहते हुए मरीज जब हमारे शिबिर से स्वास्थ्य होकर हँसते-मुस्कराते हुए घर जाते, तो मुझे अपार खुशी होती।
यदि मैं डॉक्टर होता, तो आजकल के धन के प्रेमी डॉक्टरों के सामने एक आदर्श रखता। उन्हें सेवाभावी बनने की प्रेरणा देता।
कोणत्याही टिप्पण्या नाहीत:
टिप्पणी पोस्ट करा