बस स्टैंड पर आधा घंटा
यातायात के आधुनिक साधनों में बस का बहुत महत्त्व है। शहरों में आने-जाने का मुख्य साधन सही है मिलने में कभी-कभी आधे घंटे का समय निकल जाता है।
कल मुझे अपने एक मित्र के घर जाना था। मैं बस स्टैंड पर कतार में खड़ा हो गया। मुझे 130 नंबर की बस पकड़नी थी। वैसे उस स्टैंड पर कई और नंबरों की बसें भी रुकती थीं। काफी देर हो गई, पर बस नहीं आई। मैं बड़ी उत्सुकता से कतार में खड़े लोगों के हावभाव देखने लगा। कतार में बूढ़े, जवान, बच्चे, स्त्रियाँ सभी प्रकार के लोग थे स्त्रियों बातों में उलझी हुई थीं। एक यात्री हाथ में अखबार लिए पढ़ रहा था। कालेज में पढ़ने वाले दो छात्र हँसी-मजाक में व्यस्त थे। मेरे पीछे खड़ा बच्चा अपनी माँ से खिलौना खरीदने की जिद कर रहा था। एक भिखारी हाथ में कटोरी लिए भीख माँग रहा था।
इस बीच कई बसें आती रहीं। बस आते ही यात्री बस पकड़ने दौड़ पड़ते। इससे बार-बार कतार टूट जाती थी। कभी-कभी धक्कामुक्की भी हो जाती थी।
कुछ लोग अपनी इच्छित बस आती न देख रिक्शे, टैक्सी में बैठकर चले गए क्या करते बेचारे, बस के भरोसे कब तक खड़े रहते ?
तभी 130 नंबर की बस आ गई। यात्री उसमें चढ़ने लगे। एक बुढ़िया बस में ठीक से चढ़ भी न पाई थी कि कंडक्टर ने घंटी बजा दी। बुढ़िया जैसे तैसे बस में चढ़ तो गई, पर कंडक्टर पर खूब बरसी। आखिरकार कंडक्टर को बुढ़िया से माफी माँगनी पड़ी। एक और बस देर से आई, पर उसमें भीड़ नहीं थी। मैं आराम से अंदर जाकर बैठ गया।
सचमुच, बस स्टैंड पर बस के इंतजार में आधा घंटा बिताना बहुत रोचक अनुभव है।
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