मेरी स्मरणीय यात्रा
[ रुपरेखा (1) मात्रा का उल्लेख (2) माथेरान पहुँचना (3) माथेरान की सैर (4) बाजार (5) याद आज भी ताजा)
मुझे यात्रा करना बहुत अच्छा लगता है। यों मैंने आज तक कई यात्राएँ की है। पिछली छुट्टियों में में माथेरान गया था। यह यात्रा मेरे लिए यादगार बन गई है।
दिवाली की छुट्टियों में मैंने अपने कुछ मित्रों के साथ माथेरान जाने का निश्चय किया था। मेरा पड़ोसी सतीश भी हमारे साथ था। यह कालेज में पड़ता है। हम मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से रेलगाड़ी में बैठे ढाई घंटे के सफर के बाद हम नेरल पहुँचे। वहाँ से हम खिलौने जैसी मिनी ट्रेन में बैठकर माथेरान की ओर चल पड़े। चारों ओर फैली हरियाली, हरे भरे पेड़ और गहरी घाटियों की शोभा का आनंद लेते हुए हम माथेरान पहुँचे। वहाँ हम होटल हेवन में ठहरे।
माथेरान का वातावरण मोहक और स्फूर्तिदायक था। लाल-लाल मटमैले रास्ते और घने जंगल मन को मोह लेते थे। दोपहर के समय भी यहाँ को हवा में ठंडक थी। माथेरान में देखने लायक कई स्थल है। सुबह और शाम के समय हमने घूम-घूमकर इनमें मे अनेक स्थल देखे।
यहाँ के हर स्थल की अपनी अलग विशेषता है। कुछ स्थल तो सचमुच अद्भुत हैं। एको (प्रतिध्वनि) पॉइंट पर हमने कई बार चिल्लाकर अपनी ही प्रतिध्वनियाँ सुनीं दूसरे दिन शाम को हमने सनसेट सूर्यास्त पॉइंट पर दूबते हुए सूर्य के दर्शन किए पेनोरमा (चित्रावली) पॉइंट ने तो हमारा दिल ही जीत लिया। शारलोट तालाच की शोभा निराली थी। हमने घुड़सवारी की हाथ-रिक्शे पर बैठने का मजा भी लिया। हमने अपने कैमरों से वहाँ के कई स्थानों की तस्वीरें खींचों वहाँ हम रोज घंटों पैदल चलते थे, पर जरा भी थकान नहीं लगती थी। माथेरान के छोटे-से बाजार में दिनभर यात्रियों का मेला लगा रहता था। जूते-चप्पल, शहद, चिक्को रंगबिरंगी छड़ियाँ, सुंदर-सुंदर फूलों के गुलदस्ते आदि चीजें यहाँ खूब बिकती हैं। हमने भी चिक्कों और शहद खरीदा। माथेरान में चार दिन बार पल को तरह बीत गए और हम घर लौट आए। वहाँ के मनोहर दृश्य आज भी मेरी आँखों में तैर रहे हैं।
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