मैं श्यामपट्ट बोल रहा हूँ
[ रूपरेखा (1) जन्मदाता (2) इतिहास और रूप-परिवर्तन 3) कालेपन का रहस्य (4) शिक्षक-विद्यार्थियों के रिश्तों का साधन (5) ज्ञान-प्राप्ति और कमरे को कक्षा बनाने का श्रेय 6) शिक्षकों-विद्यार्थियों के प्रति आभारी 7 हार्दिक इच्छा (8) शिकायत और निष्कर्ष।]
जो हाँ में श्यामपट्ट बोल रहा हूँ। एक निपुण कारीगर ने मेरा निर्माण किया था। जब मैं बनकर तैयार हुआ उस समय मेरा रूप अत्यंत आकर्षक था। हर शिक्षक मुझ पर लिखने के लिए आतुर रहता था। आखिर वह पुनीत बड़ी आ ही गई जब गणित के एक शिक्षक ने मोतों के से चमकीले अक्षरों में गणित के सूत्र लिखकर मेरा जीवन सार्थक कर दिया। प्रतिदिन सुबह लिखे सुभाषितों ने मेरा गौरव और बढ़ा दिया है।
मेरा इतिहास उतना ही पुराना है, जितना गुरु-शिष्य संबंधों का इतिहास समय के परिवर्तन के साथ-साथ मेरा रूप और आकार भी बदलता गया। अब तो मैं रेत, सीमेंट, लकड़ी, प्लास्टिक, टिन तथा कपड़े के रूप में भी उपलब्ध हूँ। शुक्र है कि मेरे नाम के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं हुई। मेरे दो अभिन्न सहयोगी है- बाक और डस्टर
कोणत्याही टिप्पण्या नाहीत:
टिप्पणी पोस्ट करा