मेरी प्रिय पुस्तक
[ रूपरेखा : (1) प्रिय पुस्तक का उल्लेख (2) पुस्तक की विषयवस्तु (3) पुस्तक की विशेषता (4) पुस्तक का प्रभाव (5) महत्त्व । ]
पाठ्यपुस्तकों के साथ-साथ मुझे अन्य पुस्तकें पढ़ने का भी बहुत शौक है। मैं अपने विद्यालय के पुस्तकालय से कई अच्छी पुस्तकें लाकर पढ़ चुका है। इनमें से मुझे गांधी जी की आत्मकथा सबसे अधिक प्रिय है। इस पुस्तक का नाम है 'सत्य के प्रयोग'। मुझ पर इस पुस्तक का गहरा प्रभाव है।
गांधी जी ने यह पुस्तक अपनी मातृभाषा गुजराती में लिखी है। इसका नाम है 'सत्य ना प्रयोगो'। हिंदी, मराठी और अंग्रेजी में भी इसका अनुवाद हुआ है। हिंदी में इसका नाम 'सत्य के प्रयोग', मराठी में 'सत्याचे प्रयोग' तथा अंग्रेजी में 'एक्सपेरिमेंट आफ दुब' है भारत की अन्य भाषाओं में भी इसके अनुवाद हुए हैं। गांधी जी अपने जीवन में सत्य को सबसे ट्रुथ' अधिक महत्व देते थे। इसीलिए उन्होंने अपनी आत्मकथा को यहाँ नाम दिया।
'सत्य के प्रयोग' में गांधी जी ने अपनी कमियों एवं बुराइयों का खुलकर वर्णन किया है। उन्होंने अपने धूम्रपान, मांसाहार [व] चोरी करने आदि के बारे में कुछ भी नहीं छिपाया है। हर जगह उन्होंने अपनी गलतियों को स्वीकार किया है। उन्होंने यह भीबताया है कि किस प्रकार वे इन बुराइयों के चक्कर में फँसे और कैसे उन्होंने इनसे छुटकारा पाया। इसके अलावा गांधी जी ने अपनी शिक्षा, विलायत-यात्रा, वकालत, दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह तथा भारत के स्वतंत्रता आंदोलनों की इस पुस्तक में विस्तृत चर्चा की है।
गांधी जी के ये संस्मरण हमें सदा प्रेरणा देते रहते हैं। इनसे हमें सीख मिलती है कि एक साधारण व्यक्ति किस तरह इतना महान बन गया। गांधी जी अपनी सच्चाई, लगन, ईमानदारी और आत्मशक्ति से हमारे देश के महान नेता और युग-पुरुष बन गए। इन्हीं गुणों के कारण आज हम उन्हें 'राष्ट्रपिता' के रूप में याद करते हैं। इस पुस्तक की भाषा बहुत सरल और हृदय को छू लेने वाली है। इसकी शैली भी बहुत रोचक है। इस पुस्तक को पढ़ने से के पाठक हृदय में सत्य, अहिंसा, प्रेम, आत्मविश्वास तथा मानव सेवा के भाव जागृत जाते हैं।
गांधी जी की आत्मकथा पढ़ने से मुझे बहुत लाभ हुआ है। इसके प्रभाव से मैंने कई बुरी आदतों से छुटकारा पाया है। मेरी तरह कई लोगों ने गांधी जी की आत्मकथा पढ़कर अपने जीवन की राह बदल डाली है। हमारे देश में समाजसुधार, दलितोद्धार तथा शोषण के खिलाफ आवाज उठाने में यह पुस्तक काफी सहायक सिद्ध हुई है। अब तो यह पुस्तक मेरी मित्र, गुरु और मार्गदर्शक बन गई है। जिस तरह गांधी जी मेरे प्रिय नेता हैं, उसी तरह उनकी यह आत्मकथा मेरी प्रिय पुस्तक है। मैं चाहता हूँ कि प्रत्येक भारतीय गांधी जी की आत्मकथा अवश्य पढ़े।
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