पिंजरे के पक्षी की आत्मकथा रूपरेखा
(1) अपनी कहानी सुनाने की इच्छा (2) बचपन का स्वतंत्र जीवन (3) पिंजरे में कैद होना (4) गुलामी 8 का दर्द (5) उपसंहार
आपको अचरज होगा कि पिंजरे का पक्षी भी अपनी रामकहानी सुनाना चाहता है। अरे भाई, क्या में कोई निर्जीव खिलौना हूँ? [ मैं भी सुख दुख का अनुभव कर सकता हूँ। फिर मैं अपने जीवन की कहानी क्यों नहीं सुना सकता ? मेरा जन्म एक घने जंगल में हुआ था।
मेरा रंग हरा था। मेरी माँ मुझे बहुत प्यार करती थी। उसने मुझे दाने चुगना और उड़ना सिखाया। पहली बार की उड़ान मुझे आज भी याद है। फिर धीरे-धीरे में खुले आसमान में उड़ने लगा था। इसके बाद अपने साथियों के साथ आकाश में दूर-दूर तक उड़ने लगा। पेड़ों को पतली टहनियों पर बैठकर मैं झूलता था। मेरी आवाज से सूना आकाश गूंज उठता था। कितना निश्चित और सुखी जीवन था मेरा वह।
एक दिन एक चिड़ीमार उस जंगल में आया। उसने मुझे फंसाकर पिंजरे में कैद कर लिया। मैं बहुत छटपटाया, पर उस निर्दयी का दिल नहीं पसोजा वह मुझे अपने घर ले गया। मैंने दो दिनों तक कुछ खाया पिया नहीं पर चिड़ीमार पर इसका कोई असर नहीं हुआ। उसने पिंजरा उठाया और बाजार में जाकर मुझे बेच दिया। तब से में इस कैद में अपने दुखभरे दिन काट रहा है।
मेरा मालिक बहुत दयालु है। घर के अन्य लोग भी बहुत भले हैं। वे मुझे सुनहले पिंजरे में रखते हैं। खाने के लिए मीठे फल देते हैं। पर वन के उन फलों की मिठास इन फलों में कहाँ? मैं बचपन के साथियों की याद में सदा छटपटाता रहता हूँ। इस घर के बच्चे मुझे बहुत प्यार करते हैं। स्कूल से जाने के बाद वे सीधे मेरे पास आते हैं। मेरे मुँह से ' मिट्टू' 'रामराम', 'सोताराम' आदि शब्द सुनकर वे बहुत खुश होते हैं। भोले बच्चों को मेरे दुख के बारे में क्या मालूम? इनसान भी कितना निर्दयी है। उसे पंख नहीं हैं, फिर भी वह आसमान में उड़ रहा है। भगवान ने मुझे पंख दिए हैं.
इनसान ने मुझे पिंजरे में बंद कर मेरा उड़ने का अधिकार छीन लिया है। क्या मुझे यों ही घुट-घुटकर मरना होगा ?
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