Godavari Tambekar

This is educational blog.

Breaking

Res ads

पहिली ते दहावी संपूर्ण अभ्यास

पहिली ते दहावी संपूर्ण अभ्यास
Click On Image

सोमवार, १८ सप्टेंबर, २०२३

एक भिखारी की आत्मकथा

 

                     एक भिखारी की आत्मकथा



[ रूपरेखा : (1) दिल की बात बताने का मौका (2) जन्म, बचपन और भिखारी बनाने वाली घटना (3) दुखी जीवन की झलक (4) दुर्दशा से ऊबना (5) मृत्यु की प्रतीक्षा । ] 

                मैं एक भिखारी हूँ। मेरी जिंदगी अपमान और तिरस्कार से भरी हुई है। आज पहली बार आपने मुझसे इतनी हमदर्दी जताई है। 

                मेरा जन्म बिहार के एक गाँव में हुआ था। मेरे पिता गरीब किसान थे। उनके पास बहुत कम जमीन थी। मैं अपने माता-पिता की इकलौती संतान था। इसलिए गरीबी के बावजूद मेरा बचपन लाड़-प्यार में बीता। एक बार हमारे प्रदेश में भयंकर अकाल पड़ा। दो-तीन साल तक बरसात नहीं हुई। लोग दाने-दाने को तरसने लगे। इसी बीच मेरी माँ बीमार पड़ गई। पिता जी परकर्ज का बोझ बढ़ता गया। कर्ज चुकाने में हमारे खेत बिक गए। मेरे पास कुछ नहीं रहा। कुछ दिनों बाद मेरी माँ चल बसी। थोड़े समय में पिता जी की भी मृत्यु हो गई। 

                 इस दुनिया में अब मेरा कोई सहारा न रहा। रोजी-रोटी की तलाश में मैं दर-दर भटकता रहा। एक दिन गाड़ी में बैठकर किसी तरह इस महानगर में पहुँचा। यहाँ नौकरी के लिए मैंने बहुत कोशिश की, पर नौकरी नहीं मिली। इसी दौरान एक सड़क दुर्घटना में मेरा दाहिना पाँव कट गया। अब तो भीख माँगने के सिवा मेरे पास कोई चारा ही न रहा। मैं सड़क के एक नुक्कड़ पर बैठकर भीख माँगने लगा। क्या करता? पेट की आग तो बुझानी ही थी।  

                मुझे भीख माँगते माँगते कई साल गुजर चुके हैं। भीख माँगने में दुख होता है। पर क्या करूँ ? भिखमंगे के जीवन में सुख और सम्मान कहाँ ? लोग मेरी छाया से भी दूर भागते हैं। मैं दिन भर भीख माँगता हुआ भटकता रहता हूँ। जो भी सामने आ जाता है, उसी के सामने हाथ फैला देता हूँ। भीख में मिले फटे-पुराने कपड़े ही मेरी पोशाक है। फुटपाथ हो मेरा बिछौना है। आकाश ही मेरा ओढ़ना है। बरसात और जाड़े में मेरी हालत बहुत बुरी हो जाती है। बस, किसी तरह मरते-मरते जी रहा हूँ। 

               अब तो इस दुर्दशा से दिल ऊब गया है। लोग भिखारियों को भीख न माँगने का उपदेश देते हैं, पर इस दुर्दशा से उन्हें छुटकारा दिलाने की बात कोई नहीं सोचता। अब तो मौत ही इस नरक जैसे जीवन से मुझे छुटकारा दिलाएगी। उसी का इंतजार कर रहा हूँ। बाबू जी आपकी हमदर्दी जताने के लिए धन्यवाद !

कोणत्याही टिप्पण्‍या नाहीत:

टिप्पणी पोस्ट करा