यदि मैं समाज सेवक बनूँ....
(1) समाजसेवा देशसेवा का लघु रूप (2) समाज में रूढ़ होने वाली बुराइयों से समाज को मुक्त करना ((3) गरीब बस्तियों में स्कूल, पुस्तकालय, वाचनालय, खुलवाना (4) रोजगारपरक शिक्षा पर विशेष ध्यान (5) सामूहिक विवाह पद्धति को प्रोत्साहन (6) योग्य विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति (7) तन-मन-धन से समाजसेवा।]
समाजसेवा एक प्रकार से देश की सेवा ही है। इसमें समाज के कल्याण की योजनाएँ बनती हैं और समाज की प्रगति के लिए प्रयत्न किए जाते हैं।
यदि मैं समाजसेवक बनूँ तो सबसे पहले में लोगों को उन बुराइयों से मुक्त करने का प्रयत्न करू जो समाज को खोखला कर रही हैं। इनमें मुख्य है दुर्व्यसन धूम्रपान और शराब तो पहले भी समाज के शत्रु थे अब तरह-तरह के इस हमारे युवकों का जीवन बरबाद कर रहे हैं। मैं इनके खिलाफ जोरदार मुहिम चलाऊँगा और इनसे युवकों को छुटकारा दिलाने के लिए विशेष उपाय करूंगा।
प्रगति का मूल शिक्षा है। मैं गरीब बस्तियों में विद्यालयों की स्थापना करूंगा। इन विद्यालयों में शैक्षिक विषयों के अतिरिक्त ऐसे काम भी सिखाए जाएँगे, जो भविष्य में आजीविका के साधन बन सकें। मैं पुस्तकालय और वाचनालय भी खुलवाऊँगा, जहाँ फुरसत के समय लोग विविध जानकारी प्राप्त कर सकें।
एक जाग्रत समाजसेवक के रूप में मैं सामूहिक विवाह कार्यक्रमों का आयोजन करवाऊँगा। आज समाज का एक तबका ऐसा है जिसके लिए विवाह खर्च उठाना कठिन हो गया है।
समाज की उभरती हुई प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देने के लिए मैं परीक्षाओं में श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वालों के लिए पुरस्कार देने का कार्यक्रम रखेंगा। मैं योग्य और निर्धन छात्रों के लिए छात्रवृत्ति की भी व्यवस्था करूंगा।
मैं समय-समय पर रक्तदान और आरोग्य शिबिरों का भी आयोजन करवाऊँ।
इस प्रकार में तन-मन-धन से समाज की सेवा कर अपने जीवन को सार्थक बनाऊंगा।
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