यदि दूरदर्शन न होता...
प्रस्तावना (2) ग्रामवासियों का नुकसान 1.3) लाभप्रद कार्यक्रमों से वंचित (4) छात्रों का अहित (5) साक्षरता अभियान के मार्ग में अवरोध (6) विज्ञापनदाताओं के सामने भारी संकट (7) छात्रों को पढ़ाई-लिखाई में लाभ (8) अश्लील विज्ञापनों से मुक्ति (9) निष्कर्ष ]
मनोरंजन से मनुष्य को संपयों का सामना करने की शक्ति प्राप्त होती है। दूरदर्शन मनोरंजन का एक ऐसा साधन है जो मनुष्य के जीवन को नौरसता मिटाकर व्यक्ति में नवीन शक्ति का संचार करता है। इसलिए यह कल्पना बड़ी अजीब लगती है कि यदि दूरदर्शन न होता तो..
यदि दूरदर्शन न होता तो दृश्य और श्रव्य दोनों रूपों से हमारा मनोरंजन कौन करता यदि दूरदर्शन न होता तो मनुष्य मनोरंजन के लिए केवल समाचारपत्रों पत्र-पत्रिकाओं पुस्तकों आदि पर निर्भर रहता हमारे देश को अधिकांश ग्रामीण जनता निरक्षर है। यदि दूरदर्शन न होता तो दिन भर के कामों से थके ग्रामवासियों को मनोरंजन उपलब्ध कराकर उनकी थकान कौन मिटाता ? उन्हें समय-समय पर उन्नत किस्म के बीजों एवं आधुनिक कृषि यंत्रों की उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण जानकारी कौन देता? यदि दूरदर्शन होता तो भारतीय जनता प्राचीन भारतीय संस्कृति की झलक दिखाने वाले 'रामायण' 'महाभारत' और 'चाणक्य जैसे धारावाहिकों को देखने से वंचित रह जातो ।
यदि दूरदर्शन न होता तो हम समाचार खेल-कूद सिनेमा एवं विविध प्रकार के धारावाहिकों जैसे मनोरंजक कार्यक्रमों को देखने से वंचित रह जाते।
मनोरंजन के साथ-साथ दूरदर्शन के माध्यम से शैक्षिक मुद्दों को समझना आसान हो गया है। यदि दूरदर्शन न होता तो विज्ञान के जटिल प्रयोगों को सरल व सहज रूप में विद्यार्थियों के समक्ष कौन प्रस्तुत करता ? यदि दूरदर्शन न होता तो लोगों को नई-नई खोजों तथा आविष्कारों से अवगत कौन कराता ? शिक्षाप्रद सामाजिक कार्यक्रमों द्वारा जनसाधारण को दहेज बाल विवाह अंधविश्वास जैसी कुरीतियों के अनिष्टकारी परिणामों से परिचित कौन कराता ?
विज्ञापन के लिए भी दूरदर्शन सबसे महत्त्वपूर्ण साधन है। यदि दूरदर्शन न होता तो व्यापारियों और उद्योगपतियों को विज्ञापनों के द्वारा होने वाले लाभ से वंचित रह जाना पड़ता विज्ञापनों से दूरदर्शन को भी पर्याप्त आय होती है। यदि दूरदर्शन न होता तो सरकार की यह आप बंद हो जाती।
किंतु सिक्के का दूसरा पहलू भी है। दूरदर्शन के कारण घर में बैठे-बैठे लोगों की क्रियाशीलता कुंठित हो गई है। दूरदर्शन के हिंसा और मारधाड़ से भरपूर कार्यक्रम देख-देखकर युवा पीढ़ी की जो संवेदनशीलता लुप्त हो गई है वह न होतो लोगों को फूहड़ और अश्लील विज्ञापनों से छुटकारा मिल जाता। किंतु यह कल्पना ही निरर्थक है कि यदि दूरदर्शन न होता तो क्या होता ?
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