मेरी माँ
[ रूपरेखा (1) माँ की महिमा (2) परिवार की जिम्मेदारियों में व्यस्त (3) स्वभाव की विशेषता (4) धार्मिक प्रवृत्ति व उदारता (5) मां के प्रति पूज्य भाव)
माँ शब्द में कितनी मिठास है। इस शब्द का उच्चारण करते हो वात्सल्य की जीतो जगती मूर्ति आँखों के सामने खड़ी हो जाती है। 'माँ' शब्द में ममता का भंडार भरा हुआ है।
मेरी माँ दिनभर कुछ न कुछ काम करती रहती है। गृहस्थी को हर चीज पर उसकी नजर रहती है। वह घर को साफ सफाई करती है। घर को सजाकर रखती है और परिवार के हर सदस्य का पूरा ख्याल रखती है। वह पिता जी के हर काम में उनकी सहायता करती है। मेरी पढ़ाई-लिखाई, भोजन, कपड़े आदि का इंतजाम मेरी माँ ही करती है।
मेरी माँ बहुत मिलनसार और दयालु है। वह घर आए रिश्तेदारों और मेहमानों का सहर्ष स्वागत करती है। मेरे मित्र और मेरी बहन की सहेलियों को वह बहुत प्यार करती है। घर के नौकर चाकर उसे अपनी माँ जैसा सम्मान देते हैं। मेरी माँ धार्मिक विचार की है। वह प्रतिदिन मंदिर जाती है। हमारे घर में भी एक छोटा-सा मंदिर है। मेरी माँ सुबह-शाम इस मंदिर में दीपक और अगरबत्ती जलाती है। भगवान के चरणों में फूल चढ़ाती है और हाथ जोड़कर प्रार्थना करती है। वह ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं है लेकिन अंधविश्वासों और रूढ़ियों को नहीं मानती वह छुआछूत में विश्वास नहीं करती। मेरी माँ का मन उदार और हृदय विशाल है वह हमें खूब पढ़ाना चाहती है। उसकी इच्छा है कि हम पढ़-लिखकर योग्य बनें, अपने पैरों पर खड़े हो ईमानदार और स्वाभिमानी नागरिक बनें।
मैं अपनी माँ को बहुत प्यार करता हूँ। सुबह उठकर सबसे पहले माँ के चरण छूता हूँ। मेरी माँ मुझे आशीर्वाद देती है।
सचमुच मेरी माँ स्नेह, ममता, कर्तव्य पालन और सद्भावना को जीती जागती मूर्ति है। मेरे जीवन निर्माण का श्रेय मेरी माँ को ही है। माँ की सेवा प्यार और ममता का ऋण मैं कभी नहीं चुका सकता।
कोणत्याही टिप्पण्या नाहीत:
टिप्पणी पोस्ट करा