यदि मैं स्कूल का प्रधानाचार्य होता...
[ रूपरेखा (1) प्रधानाचार्य बनने की कल्पना (2) पढ़ाई की उचित व्यवस्था (3) अन्य गतिविधियों को प्रोत्साहन (4) प्रधानाचार्य के रूप में आदर्श स्थापित करना (5) अपनी पाठशाला को शहर की सबसे अच्छी पाठशाला बनाने का प्रयत्न।]
मेरे विद्यालय के प्रधानाचार्य एक योग्य और प्रतिभाशाली व्यक्ति हैं। अपने काम में वे बहुत ही कुशल हैं। उन्हें देखकर मैं सोचता हूँ कि बड़ा होकर यह पद प्राप्त करता तो क्या करता?
सचमुच, यदि मैं प्रधानाचार्य होता, तो अपने विद्यालय को शहर का सबसे अच्छा विद्यालय बनाता विद्यार्थियों के ज्ञान का स्तर ऊँचा उठाने के लिए मैं कुशल, लगनशील और विद्वान अध्यापकों की नियुक्ति करता। मैं विज्ञान पर विशेष जोर देता। इसके लिए विद्यालय की प्रयोगशाला को समृद्ध और आधुनिक बनाने का प्रयत्न करता पुस्तकालय में विद्यार्थियों की आवश्यकता को सभी पुस्तकें रखवाता विविध भाषाओं के अखवार तथा उपयोगी पत्रिकाएँ भी मँगवाता चित्रकला, संगीत व संगणक प्रशिक्षण के लिए मैं अपने विद्यालय में अच्छी व्यवस्था करवाता मैं विद्यार्थियों के विकास पर अधिक ध्यान देता।
मैं अपने विद्यालय में समय-समय पर वाद-विवाद प्रतियोगिता, निबंध स्पर्धा, भाषण प्रतियोगिता आदि का आयोजन करता। इसके अलावा विशेष अवसरों पर विद्वानों के प्रवचन तथा कवि-सम्मेलनों का आयोजन भी करवाता। मैं अपने विद्यालय में विद्यार्थियों के शारीरिक विकास को बहुत महत्त्व देता। अपने स्कूल में मैं खेल-कूद तथा व्यायाम के सभी साधन उपलब्ध कराता। एस. एस. सी. परीक्षा के परिणाम की मेरिट सूची में मेरे विद्यालय के विद्यार्थियों के नाम अवश्य होते। मेरे स्कूल की कैंटीन इतनी साफ-सुथरी और समृद्ध होती कि विद्यार्थियों को बाहर की चीजें खाने की जरूरत ही न पड़ती।
मैं अनुशासन और विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण पर विशेष ध्यान देता। इसके लिए मैं स्वयं परिश्रम एवं निष्ठापूर्वक काम करता। मैं अपने सादे जीवन एवं उच्च विचारों से विद्यार्थियों और शिक्षकों के सामने अनुकरणीय आदर्श प्रस्तुत करता। अपने साथी अध्यापकों और आफिस के कर्मचारियों के प्रति मेरा व्यवहार सहानुभूतिपूर्ण होता।
यदि मैं प्रधानाचार्य होता, तो अपने विद्यालय को मैं एक आदर्श और लोकप्रिय शिक्षा संस्था बनाने की भरसक कोशिश करता।
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