आदर्श गांव.
भारत गाँवों में बसता है, इसलिए यदि आदर्श भारत की रचना करनी है, तो सबसे पहले गाँवों को आदर्श बनाना होगा।
आदर्श गाँव वह है, जहाँ लोग व्यसनों से मुक्त हों, मेलजोल से रहते हों। लोग आपसी लड़ाई-झगड़ों, दुश्मनी और मुकदमेबाजी से दूर हों, उनमें एकता और सहयोग की भावना हो। इस प्रकार आपसी प्रेम और भाईचारे की भावना से युक्त गाँव ही आदर्श गाँव कहलाता है। ऐसा आदर्श गाँव छोटा भले ही हो, पर वहाँ स्वर्ग जैसा सुख होगा।
बुरी आदतें आदमी को बरबाद कर डालती हैं। शराब, जुआ, बीड़ी-सिगरेट आदि का सेवन ऐसी ही बुरी आदतें हैं। इन व्यसनों में फँसे लोगों की सारी कमाई नशे में बरबाद हो जाती है। लोगों की गरीबी बढ़ती जाती है। व्यसन के पीछे उनके घर-द्वार तक बिक जाते हैं। जिस गाँव के लोग मेहनती, श्रद्धालु और संतोषी हों; जिनकी दिलचस्पी धन के सदयुयोग में हो, जहाँ के लोग व्यसनों से पूरी तरह मुक्त हों, वही गाँव आदर्श गाँव कहा जा सकता है।
आदर्श गाँव उसे कहते हैं जहाँ के सभी लोग शिक्षित हों। शिक्षित होकर ही वे देश की उन्नति में अपना योगदान कर सकते हैं। शिक्षित लोग ही ज्ञान-विज्ञान का लाभ उठा सकते हैं। शिक्षित किसान ही वैज्ञानिक ढंग से खेती कर सकता है। इसलिए आदर्श गाँव में कम से कम माध्यमिक शिक्षा तक की पढ़ाई की व्यवस्था जरूर होनी चाहिए। लोगों का ज्ञान बढ़ाने के लिए गाँव में एक सार्वजनिक पुस्तकालय तथा वाचनालय होना चाहिए। इलाज की सुविधा के लिए गाँव में कम से कम एक अच्छा दवाखाना होना जरूरी है। गाँववालों को पीने के लिए शुद्ध जल सुलभ होना चाहिए। गाँव में बिजली की समुचित व्यवस्था हो और जानमाल की सुरक्षा के लिए एक पुलिस चौकी भी हो। गाँव से कस्बे तक पक्की सड़क होनी चाहिए। गाँव के अंदरूनी रास्ते भी पक्के होने चाहिए।
गाँव के बाहर खेल का एक मैदान तथा गाँव के आसपास हरेभरे बगीचे हो, तो गाँव की शोभा में चार चाँद लग जाते हैं। जो सुख, समृद्ध एवं प्रगतिशील हो, वही आदर्श गाँव है।
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